जो उसकी समाई में नहीं अँटे उनके पते याद करती
दिन गिनती करती रही नए जन्मों का इंतजार
निशानी के तौर पर एक पत्ती को सहेजे रही
और समझती थी छाँह
बिस्तर के काठ में किसी कीड़े के चलने की आवाज
और जीवन में झरता महीन बुरादा,
सपने आते जिन्हें समझती थी प्यार,
वह निर्णय नहीं कर पाती थी
कि जाग रही है या सो रही है
कि न जाग रही है न सो रही है
किसी चमत्कार की आशा में
सूखती रही तार पर मोजों कमीजों अधोवस्त्रों के साथ
जैसे यह किसी और के साथ घटित हो रहा हो
किसी ने नहीं कहा, वह वहाँ क्या कर रही है
वह देखे जाने में ही थी शायद
उभारों कटावों और ढलानों भर
आत्मीय स्पर्श की आकांक्षा में त्वचा,
कभी न सोने वाले म्लान पड़ते हाथ,
कनपटी पर झूलती सफेदी और इस तरह आईने में बीतती
आग और पानी की साखी में उसने किया
इंतजार, सबको प्यार, सुनी सबकी पुकार
समझती थी कि वह भी वहीं है जहाँ सब थे,
उसने दस लोगों के लिए रोटियाँ पकाईं, पानी रखा
और करती रही नींद में रखवाली,
तब किसी ने नहीं कहा दसवीं तुम हो
उँगली के पोरों पर रात और दिन एक से नौ गिनती
और हर बार शून्य पर खत्म होती कभी सोचती
वह इस सब में कहीं कुछ जोड़ती थी या नहीं,
इस जोड़ घटाने में उसकी जगह मूल अंकों के दाहिने थी या बाएँ ?
ऐसा नहीं था कि वह कहना नहीं चाहती थी
या कि कह नहीं सकती थी लेकिन
जैसे मानक भाषा के सामने अपनी बोली-बानी भूलती,
वह क्या कहती और भला किससे ?
अपनी दुनिया के नियम ठीक से समझने की कोशिश में
एक अनदेखी नदी के तट पर कभी बस निठल्ली सी बैठी
ताकती रहती है आती जाती लहरें,
शरीर पर एक भी धागा नहीं,
मिथक और इतिहास, आख्यानों और किस्सों से घिरी उसके पास
नहीं है समय की रफ्तार कम-तेज करने का फन।